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"अयं निज : परोवेति गणना लघु चेतसाम् । उदार चरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम॥"

26 अप्रैल 2015

चुडैल की मुक्ति

Blogvani.comगाँव के लोग जंगल से सटे उस खास इलाके में नहीं जाते थे . ग्रामीणों में मान्यता थी कि वहाँ एक चुडैल रहती है . भटककर उस इलाके में पहुँचे अनेक ग्रामीण उसे देखने की पुष्टि भी करते हैं . उनके कथनानुसार वह अक्सर भोर होने के पहले दिखाई देती है .

           इस बार गर्मी की छुट्टियाँ मैने गाँव में ही बिताने का निर्णय किया . घर में बातचीत के दौरान जब मुुझे इस बारे में पता चला तो मुझे चुडैल को देखने की इच्छा होने लगी . हॉरर फिल्मों के अलावा मैने आज तक चुडैल नहीं देखी थी .  इसलिये अगले दिन सुबह- सुबह अंधेरे ही में उठकर मार्निंग वॉक के बहाने उस ओर निकल आया .
           काफी दूर चलने के बाद मुझे सूखे पत्तों की खडखडाहट सुनाई दी . मैं ठिठककर खडा हो गया और ध्वनि की दिशा में सतर्क हो कर देखने लगा . दूर में एक साया नजर आया जो धीरे धीरे चलते हुये कहीं कहीं पर रूक-रूक कर झुक जाता और फिर आगे बढ जाता . मेरे शरीर में कंपकंपी दौड गयी, जी में आया घर वापस चला लौट चलूॅ , किन्तु साहस बटोरकर मैने उसके पास जाने का निर्णय लिया . जैसे ही मै साये के करीब पहुॅचा वह मुझसे दूसरी दिशा में दूर जाने लगा. मैं तेज चलकर उसके सामने आकर खडा हो गया. सामने सफेद बालो वाली ,मैले कुचैले कपडे पहने नंगे पैर एक काली बुढिया खडी थी. उसके हाथों में सरकण्डे से बनी हुई टोकरी थी जिसमें गोबर रखा था .

           मैने पूछा आप कौन हैं और यहाँ क्या कर रही हैं . बुढिया ने उत्तर दिया - "मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है, पति की मौत के बाद घरवालों ने मुझे निकाल दिया तब से मै इसी इलाके में पेडों के आश्रय में रहती हूँ . भोर होने के पहले गोबर बीन कर कंडे बनाती हूँ और दिन में उसे पास के गॉवों में बेच आती हूँ , इससे मेरा गुजारा हो जाता है."

           मै उसे समझा बुझा कर गाँव ले कर आया व सरपंच के साथ प्रयास कर उसका राशन कार्ड बनवाया और निराश्रित पेंशन मंजूर करवाया . अब वह गाँव में ही हमारे खेत में बने सर्वेंट क्वार्टर में रहती है.

            बहुत दिनों से गाँव में चुडैल को देखे जाने की कोई खबर नहीं है . ग्रामीणोंं का मानना है कि शायद चुडैल की मुक्ति हो चुकी है अतएव अब वह दिखाई नहीं देती .

10 जून 2010

वाक्यों में छिपे रंग पहचानिए




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1- राम बहरा है .
2- चंपक मनीला गया है.
3- कालाकांकर का राजभवन ऐतिहासिक धरोहर है.
4- अनुत्तीर्ण होने का मलाल मत करो.
5- जपी लाभ में रहा.
6- गुलगुला बीना को पसंद नहीं है.
7- पुस्तक के पहले सफे दबाकर नहीं रखना चाहिए.
8- राम ने कहा- जा मुनी के पास ज्ञान लेकर आ.
9- चोर बैग नीचे रखकर चला गया.
10- नारंगीदास बांसुरी बहुत अच्छी बजाते हैं.

संकेत :- हरा,नीला,काला,लाल,पीला,गुलाबी,सफेद,जामुनी,बैगनी,नारंगी.

08 जून 2010

"यूं करें अपना विरोध प्रदर्शन"


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भारत एक प्रगतिशील राष्ट्र है. राष्ट्र की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सतत् प्रयास करने के बावजूद हमें अपेक्षित सफलता नहीं मिली है. अत: भारत को संपन्न एवं आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने के लिए अदम्य आत्मविश्वास,कठोर परिश्रम, ईमानदारी एवं उपयोगी और व्यवहारिक नीतियों की आवश्यकता है.

लोकतांत्रिक राज्य में किसी नीति के प्रति सभी लोगों का सहमत न हो पाना स्वभाविक है परन्तु अपने विरोध प्रदर्शन के लिए हम हड्ताल, तालाबंदी एवं चक्काजाम आदि परंपरागत साधनों का प्रयोग करते हैं जिससे आम जनता के लिए अत्यंत असुविधाजक स्थिति उत्पन्न हो जाती है साथ ही राष्ट्र का विकास अवरूद्ध होता हैं. हमें असहमत होने एवं अपने विरोध प्रदर्शन का पूरा अधिकार है किंतु ध्यान रखना चाहिए कि हमारा विरोध प्रदर्शन भी राष्ट्र के लिए कल्याणकारी हो्. विरोध प्रदर्शन के परंपरागत साधनों के स्थान पर हम निम्न प्रकार से अपना विरोध प्रदर्शित कर सकते हैं :-

1- कार्यालयों में बिना अतिरिक्त वेतन के दो-चार घंटे अतिरिक्त कार्य करें.साथ ही अवकाश के दिन भी अवैतनिक कार्य करें.
2- सड्कों एवं गंदे स्थानों की साफ-सफाई करें.
3- असहायों एवं निर्धनों के लिए नि:शुल्क भोजन की व्यवस्था करें.
4- बेसहारा-बीमार लोगों के लिए चिकित्सा एवं दवाओं की व्यवस्था करें.
5- रक्तदान करें.
6- पौधारोपण या इसी तरह का कोई अन्य जनोपयोगी कार्य करें.

उपर्युक्त बातों को व्यवहार में लाकर हम अपने विरोध प्रदर्शन को भी राष्ट्र के लिए कल्याणकारी सिद्ध कर सकते है साथ ही बिना द्वेष व तनाव उत्पन्न किए ही अपनी मांगे मनवाने में सफल हो सकते हैं.

नहले पर दहला

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पति -हर सफल पुरूष के पीछे एक स्त्री होती है.
पत्नि (चिढकर)-हां, और यह भी जान लो हर असफल स्त्री के पीछे एक पुरूष होता है.

" तो फिर बात बने'"


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आज की रात बडी देर के बाद आयी है,
रात जो देर से बीते, तो फिर बात बने....

बीत जाती है घडी मिलने की बहुत जल्दी,
वक्त रूक जाए उनके आते, तो फिर बात बने....

गिले शिकवे में बीतते हैं कीमती लम्हे,
आंखो-आंखों में जो हो बात, तो फिर बात बने....

बातें रहती हैं ढेरों उनसे करने की,
खत्म हो जाए सारी बात, तो फिर बात बने....

उनसे होती है मुलाकात इक मुद्दत के बाद,
रोज दिन हो जो मुलाकात, तो फिर बात बने....

जिंदगी के दिन कट रहे हैं उनके बिन,
रात-दिन को हो उनका साथ, तो फिर बात बने....

अक्सर वो करते हैं बातें भूल जाने की,
भुला दें भूलने की बात, तो फिर बात बने....

ईश्क के दुश्मन हों जमाने में हजार सही,
दोस्त भी हों दो-चार, तो फिर बात बने....

"घडी"


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टिक-टिक करती घडी हमारी,
समय बताती जाती है.
रंग-बिरंगी प्यारी घडियां,
हमें खूब ही भाती हैं.

बच्चे बूढे सभी पहनते,
काम बहुत ये आती है.
लापरवाही दूर भगाकर,
समय की कद्र सिखाती है.

बिना रूके चलती है हरदम,
जीना हमें सिखाती है.
चलते जाना ही जीवन है,
घडी हमें बतलाती है.

आलस छोडो बनो घडी से,
जीवन में बढ जाओगे.
उन्नति के सबसे उंची,
चोटी पर चढ जाओंगे.

31 मई 2010

हाथी दादा


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हाथी दादा

हाथी दादा,उठा के बस्ता
पढने को स्कूल गए,
गुल्ली-डंडा,आँख-मिचौली
पतंग उडाना भूल गए.

बच्चे उनको खूब चिढाते
मोटू-मोटू कहते थे,
हाथी दादा कुछ न कहते
चुपचाप सुनते रहते थे.

हाथी दादा पढते खूब
कभी न जाते देर से,
परीक्षा में पास हुए
और नंबर लाए ढेर से.

मैडम ने की खूब बडाई
और दी उनको टाफी,
बच्चों ने अपनी गलती की
मांगी उनसे माफी.