मैं बीता हुआ कल हूं
अतीत की लाश हूं
मुझे हटाओ
नया बनाओ
पर मुझे उनकी आवाज सूनाई नहीं देती
और आंखों के सामने खुली सच्चाई दिखाई नहीं देती
मैं खण्डहर भक्त हूं
खण्डहर के शत्रु मूझे समाज के शत्रु प्रतीत होते हैं
यद्यपि मैं अंधा हूं (और शायद बहरा भी)
पर दूसरे को अंधा कहने का मुझे हक है
मैंने सुन रखा है
कभी इस इमारत की अलग ही शान थी
इस इलाके में इसकी पृथक पहचान थी
मुझे बचपन से ही कथाओं से प्रेम है
अंतर केवल इतना है
पहले मै कथा केवल सुनता था
अब उन्हें सच भी मानता हूं
जोर की आवाज आई
खण्डहर की दीवारें भी गिर गई
अब यह मलबा सडक मे अवरोध पैदा कर रहा है
आने जाने वालों को दिक्कत हो रही है
पर मैं उन्हे नहीं हटाने दूंगा
आखिर आम नहीं खास हूं
एम ए पास हूं
खण्डहर कभी महल थे
यह बात सच है
खण्डहर अब केवल खण्डहर हैं
यह बात भी सच है
खण्डहर की वस्तुएं अजायबघर की शोभा बढाती हैं
घर की शोभा नष्ट करती हैं
हमारी जवाबदेही हैं
आगे आएं
खण्डहर हटाएं
नया बनाएं
waah adbhut rachna...sahi hai kal ko bhool nayi tasveer sajaane ka waqt aa gaya hai...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना, ब्लॉगजगत में स्वागत है आपका!
जवाब देंहटाएंखंडहरों का भी अपना एक महत्त्व है | इस सुन्दर रचना का आभार |
जवाब देंहटाएं@नरेश सिह राठौङ :उक्त कविता में खंडहर अप्रासंगिक हो चुकी रूढियों यथा सती प्रथा,बाल विवाह,दहेज प्रथा,कन्या वध,पर्दा प्रथा,डाकिनी एवं डावरिया प्रथा,सगोत्र विवाह निषेध,मृत्यु भोज आदि का प्रतीक है.
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी के लिए आभार.
आपसे बिलकुल ही सहमति है.
जवाब देंहटाएंlike you...
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